2009 में Bitcoin के लॉन्च के साथ ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी ने महज पंद्रह साल पहले ही सिर उठाना शुरू किया था। अपने इतने छोटे-से इतिहास के बावजूद ब्लॉकचेन बाज़ार ने फ़ौरन तरक्की करते-करते विकेंद्रीकृत फ़ाइनेंस के अपने मूल मंत्र को बार-बार दोहराया है। अलग-अलग ब्लॉकचेन नेटवर्कों ने वैकल्पिक भुगतान प्रणालियाँ, कन्सेंसस अल्गॉरिथम, प्रोसेसिंग स्पीड और Bitcoin के क्लासिक फ़ॉर्मूले के अन्य वेरिएशन मुहैया कराए हैं।
नतीजतन मौजूदा क्रिप्टो बाज़ार में 1000+ अनूठे ब्लॉकचेन प्लेटफ़ॉर्म उपलब्ध हैं। इन सभी प्लेटफ़ॉर्मों की अपनी कस्टम विशेषताएँ और तौर-तरीके हैं। इसलिए ब्लॉकचेन इंटरऑपरेबिलिटी क्रिप्टो जगत में एक हॉट मुद्दा बनकर उभरी है।
इस लेख में क्रॉस-चेन संबंधी चिंताओं का समाधान कर सकने वाली सबसे व्यावहारिक टेक्नोलॉजियों में से एक, कॉइन रैपिंग के कॉन्सेप्ट, पर हम चर्चा करेंगे। इस टेक्नोलॉजी की बदौलत उपयोगकर्ता बिना किसी सीमा के ब्लॉकचेन नेटवर्कों का लुत्फ़ उठा सकते हैं।
प्रमुख बिंदु
- क्रिप्टो रैपिंग एक नयी टेक्नोलॉजी है, जिसकी बदौलत कोई व्यक्ति अलग-अलग ब्लॉकचेन प्लेटफ़ॉर्मों में अपने क्रिप्टो कॉइन्स का इस्तेमाल कर सकता है।
- रैप्ड टोकनों को कस्टोडियनों के माध्यम से बनाया जाता है, जो संबंधी धनराशी प्राप्त कर लेने के बाद रैप्ड कॉइन्स को मिंट करते हैं।
- रैप्ड और मूल टोकन स्थायी रूप से एक-दूसरे से जुड़े होते हैं व उन्हें एक-दूसरे के बराबर होने के लिए ही डिज़ाइन किया जाता है।
- रैप्ड कॉइन्स से क्रॉस-चेन गतिविधि, चयन की स्वतंत्रता और बाज़ार-व्यापी लिक्विडिटी में बढ़ोतरी आ जाती है।
- कस्टोडियनों और तीसरी पार्टी वाली प्रक्रियाओं पर निर्भरता ही क्रिप्टो रैपिंग को सहज रूप से ज़्यादा संवेदनशील बनाती है।
ब्लॉकचेन इंटरऑपरेबिलिटी समस्या
रैप्ड क्रिप्टो टोकनों की प्रकृति के बारे में चर्चा करने से पहले ब्लॉकचेन की इंटरऑपरेबिलिटी समस्या को समझ लेना अहम है। Bitcoin और Ethereum जैसे शुरुआती लेयर-1 नेटवर्कों का विकेंद्रीकरण और गुमनामी के प्रति मिलता-जुलता दृष्टिकोण था, लेकिन उन्हें बिल्कुल अलग-अलग प्रणालियों, आर्किटेक्चर्स और प्रोटोकॉल्स के माध्यम से विकसित किया गया था। नतीजतन इन नेटवर्कों के पास “आपस में बातचीत” कर जानकारी या एसेट्स का आदान-प्रदान करने का कोई कारगर साधन नहीं है।
इसलिए लेयर-1 और बाज़ार में मौजूद ज़्यादातर लेयर-2 नेटवर्कों के पास जानकारी का आदान-प्रदान करने का कोई इन-बिल्ट सॉल्यूशन नहीं है। हो सकता है पहली नज़र में यह कोई बड़ी बात न लगे, लेकिन क्रॉस-चेन इंटरऑपरेबिलिटी की कमी के चलते एक ही प्लेटफ़ॉर्म पर उपयोगकर्ता के फ़ंड्स और अन्य एसेट्स सीमित हो जाते हैं, जिससे चयन की उनकी स्वतंत्रता काफ़ी कम रह जाती है।
हालांकि इस समस्या को हल करने के ब्रिज API व अन्य तीसरी पार्टी वाले सॉल्यूशनों जैसे और भी तरीके हैं, इनकी अक्सर अपनी-अपनी समस्याएँ भी होती हैं। अलग-अलग ब्लॉकचेनों को जोड़ने वाले डिजिटल पुल साइबर सुरक्षा के मामले में जोखिमपूर्ण साबित हुए हैं।
इसलिए लगभग एक दशक से ब्लॉकचेन उपयोगकर्ता किसी भरोसेमंद समाधान की तलाश में हैं। रैप्ड कॉइन्स की बदौलत इंडस्ट्री के पास आखिरकार इस चुनौती से पार पाने का मौका है। आइए जानते हैं इस बारे में।
रैप्ड क्रिप्टो टोकनों का क्या मकसद होता है?
रैप्ड टोकन का कॉन्सेप्ट 2019 में तब सामने आया था, जब तीन अलग-अलग कंपनियों, Bitgo, Ren और Kyber Network, को एक ही आईडिया आया था। विचार यह था कि ERC-20 और TRC-20 जैसे अन्य प्रोटोकॉलों पर कार्यात्मक रूप से Bitcoin से मिलते-जुलते प्लेटफ़ॉर्म तैयार किए जाएँ ताकि लोग अपने BTC फ़ंड्स का अन्य टारगेट ब्लॉकचेन प्लेटफ़ॉर्मों पर भी इस्तेमाल कर सकें।
स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट फ़ंक्शनैलिटी के चलते मुमकिन हो पाई इस समूची प्रक्रिया के तहत डेवलपर रैपिंग प्रक्रिया को ऑटोमेट कर सकते थे। परिणामस्वरूप, 2019 में हमें WBTC नाम का Bitcoin का रैप्ड वर्शन मिला था।
स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट फ़ंक्शनैलिटी यह भी सुनिश्चित करती है कि WBTC हमेशा एक ही BTC कॉइन के बराबर हो, जिससे नुकसानदेह आर्बिट्राज या उपयोगकर्ता को होने वाले नुकसान की संभावना समाप्त हो जाती है।
उपर्युक्त फ़ायदे आपस में मिलकर किसी बड़ी जटिलता या सुरक्षा संबंधी परेशानी के बिना ही चेन्स को पार करने वाला एक टोकन बना देते हैं। हालांकि रैप्ड कॉइन्स की मिंटिंग प्रक्रिया सरल नहीं होती, नेटिव टोकन खरीदे बगैर नयी चेनों में प्रवेश करने का यह सबसे विश्वसनीय तरीका होता है।
रैप्ड Bitcoin टोकनों को संभालने की एक तेज़तर्रार कुंजी
BTC और अन्य टोकनों को रैप करने की प्रक्रिया अपेक्षाकृत सरल होती है। ऐसे कई प्लेटफ़ॉर्म हैं, जहाँ उपयोगकर्ता रैपिंग प्रक्रिया का आगाज़ कर उस राशि के रैप्ड क्रिप्टो एसेट्स प्राप्त कर सकते हैं। फ़िलहाल Bitcoin बाज़ार में मौजूद सबसे जाना-माना विकल्प है, तो चलिए WBTC टोकन की मिंटिंग और रैपिंग प्रक्रिया के बारे में चर्चा कर लेते हैं। गौरतलब है कि अन्य टोकनों की रैपिंग तकनीकें WBTC से काफ़ी मिलती-जुलती हैं व उनमें मामूली फ़र्क ही होते हैं।
BTC कॉइन्स को रैप कैसे करें?
BTC टोकनों को रैप करने की प्रक्रिया के तहत या तो किसी केंद्रीकृत एक्सचेंज में प्रवेश किया जाता है या फिर विकेंद्रीकृत कस्टोडियन दृष्टिकोण का उपयोग किया जाता है। दोनों ही मामलों में, उपयोगकर्ताओं को संबंधी कस्टोडियनों को अपने BTC फ़ंड्स भेजने होते हैं। उसके बाद, प्राप्त राशि को लॉक कर कस्टोडियन रैप्ड कॉइन्स को मिंट करने वाला फ़ंक्शनल रिज़र्व बना सकते हैं।
उसके बाद, कस्टोडियन स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट्स के माध्यम से मिंटिंग प्रक्रिया शुरू कर सकते हैं, जिसे सिर्फ़ एक 1:1 मिंटिंग प्रक्रिया की अनुमति देने के लिए ही डिज़ाइन किया जाता है। सिर्फ़ डिजिटल वॉल्ट में संग्रहित BTC कॉइन्स के बराबर का WBTC ही बनाया जा सकता है। आटोमेटिक पेगिंग प्रोटोकॉल ब्लॉकचेन नेटवर्क और अपने उपयोगकर्ताओं की नुकसानदेह आर्बिट्राज या सैंडविच हमलों वाली गतिविधियों से रक्षा करता है।
WBTC के सफलतापूर्वक मिंट हो जाने के बाद उपयोगकर्ताओं को अपने निर्दिष्ट वॉलेट में संबंधी राशि प्राप्त हो जाती है व ERC-20 और TRC-20 नेटवर्कों पर वे बिना किसी पाबंदी के WBTC का इस्तेमाल कर सकते हैं।
WBTC को अनरैप कैसे करें?
हालांकि WBTC कॉइन्स का ज़्यादा व्यापक तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है, कभी न कभी उपयोगकर्ता अपने मूल कॉइन्स को वापस प्राप्त करना चाहेंगे ही। ऐसे में, या तो उपर्युक्त प्रक्रिया ठीक से प्रतिबिंबित की जाती है या फिर उपयोगकर्ता या व्यापारी अपने-अपने कस्टोडियनों के पास एक बर्निंग रिक्वेस्ट डाल देते हैं। नतीजतन कस्टोडियनों को अपने BTC को स्थायी रूप से सर्कुलेशन से हटाकर बाकी के रिज़र्व कॉइन्स डिजिटल वॉलेट में रिलीज़ करने पड़ते हैं।
हालांकि मिंटिंग और बर्निंग प्रक्रियाएँ अपेक्षाकृत सरल होती हैं, वे कस्टोडियनों की विश्वसनीयता पर निर्भर करती हैं। ज़्यादातर लोग क्रिप्टो टोकनों के विकेंद्रीकरण और गुमनामी को अहमियत जो देते हैं, जो रैपिंग के इस्तेमाल से काफ़ी कम हो जाती हैं। इस समस्या का समाधान करने के लिए ब्लॉकचेन समुदायों ने कस्टोडियनों और तीसरी पार्टी वाले व्यापारियों के चयन की देखरेख करने वाले विकेंद्रीकृत स्वायत्त संगठन, या फिर डीसेंट्रलाइज़्ड ऑटोनॉमस आर्गेनाइज़ेशन्स (DAO) की स्थापना की है।
DAO की मौजूदगी से यह सुनिश्चित होता है कि रैपिंग के लिए सिर्फ़ जाँचे-परखे कस्टोडियन ही बुनियादी एसेट को सिक्योर कर सकते हैं और स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट्स के तहत रैप्ड टोकन की वैल्यू से कभी छेड़छाड़ न की जाई। लेकिन अपने मौजूदा रूप में यह प्रक्रिया भी कोई रामबाण उपाय नहीं है, क्योंकि रैपिंग तकनीक अभी भी इंसानों की सतर्कता और प्रोफ़ेशनलिज़्म पर निर्भर करती है।
अलग-अलग प्रकार के रैप्ड टोकन
रैपिंग टेक्नोलॉजी अभी भी क्रिप्टो बाज़ार में ताज़ा है, और संभावित विकल्प काफ़ी सीमित हैं। लेकिन मुख्यधारा के अधिकतम नेटवर्कों ने उभरती रैपिंग टेक्नोलॉजी को सपोर्ट करने का प्रयास किया है। इनमें से प्रमुख नेटवर्कों में शामिल हैं रैप्ड Ethereum (wETH), रैप्ड BNB (WBNB), रैप्ड DOGE (WDoge), और रैप्ड TRON (WTRX)। इस वर्ष तक, इनमें से ज़्यादातर WBTC विकल्पों के तहत वर्चुअल मुद्राओं को रैप और अनरैप करने के एक ही तरीके का इस्तेमाल किया जाता है।
वैकल्पिक रैप्ड कॉइन्स की बढ़ती लोकप्रियता के बावजूद, लगभग $7 अरब की मार्केट कैपिटलाइज़ेशन के साथ WBTC मज़बूती से शीर्ष पर बना हुआ है। इसका प्रमुख कारण जनता कि यह धारणा है कि Bitcoin अभी भी समूचे क्रिप्टो जगत की सबसे विश्वसनीय और स्थिर मुद्रा है।
ज़ाहिर-सी बात है कि ऐसी भरोसेमंद मुद्रा को अलग-अलग नेटवर्कों पर ट्रेड करने की संभावना काफ़ी लुभावनी होती है, जिसके चलते WBTC ने अपने मूल वर्शन की ही तरह बाज़ार पर कब्ज़ा कर लिया है। BTC की स्थिरता और Ethereum जैसे अन्य, तकनीकी तौर पर ज़्यादा एडवांस्ड नेटवर्कों के इस्तेमाल के फ़ायदों के चलते क्रिप्टो बाज़ार में इसका कोई सानी नहीं है। यह देखना दिलचस्प होगा कि WBTC के प्रभुत्व को चुनौती देने के लिए अन्य रैप्ड कॉइन्स प्रतिस्पर्धात्मक फ़ीचर्स पेश कर पाते हैं या नहीं।
रैप्ड NFT टोकन
NFT बाज़ार के एक पूरी तरह से अलग लक्ष्य की पूर्ति करने वाले रैप्ड NFT टोकन यकीनन WBTC का सबसे विशिष्ट विकल्प हैं। 2021 के क्रिप्टो बूम के बाद अपनी अधिकतम मार्केट कैपिटलाइज़ेशन गँवा चुकी NFT को हाल ही के वर्षों में काफ़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ा है। आज आर्ट पीसिज़ को डिजिटाइज़ करने के अपने आरंभिक आधार पर लौटकर NFT क्रिएटरों को अपनी रचनाओं से समूचा मुनाफ़ा प्राप्त करने का मौका दे रही हैं।
रैपिंग प्रक्रिया NFT के लिए बिल्कुल सही है, क्योंकि इसके चलते मालिक अपने कंटेंट को किसी भी नेटवर्क पर बेच सकते हैं। रैपिंग की बदौलत मालिक अलग-अलग ब्लॉकचेन से रॉयल्टी प्राप्त कर डिजिटल वॉल्ट्स में आर्ट पीस स्टोर कर अपने स्वामित्व की सुरक्षा में भी सुधार ला सकते हैं। परिणामस्वरूप, NFT मालिकों के लिए रैपिंग एक प्रमुख रणनीति है, जिसके तहत वे अपनी टारगेट ऑडियंस में स्वाभाविक रूप से बढ़ोतरी ला सकते हैं।
कॉइन्स रैप करने के अनूठे फ़ायदे
भले ही रैपिंग प्रक्रिया शुरू-शुरू में कोई बड़ी बात न लगे, लेकिन इस टेक्नोलॉजी से समूचे क्रिप्टो जगत का दायरा और स्वतंत्रता काफ़ी हद तक बढ़ जाते हैं। पुराने ज़माने में क्रॉस-चेन करने के लिए उपयोगकर्ताओं को खुद को एक ही नेटवर्क तक सीमित करना पड़ता था, अलग-अलग एकाउंट सेटअप करने पड़ते थे, या फिर संदिग्ध ब्रिज API का इस्तेमाल करना पड़ता था। रैपिंग विधि की बदौलत एक नेटवर्क से दूसरे नेटवर्क में जाना सभी संबंधित पार्टियों के लिए सरल और फ़ायदेमंद हो गया है।
इंटरऑपरेबिलिटी समस्या का समाधान
जैसाकि ऊपर उल्लेख किया गया है, इंटरऑपरेबिलिटी ब्लॉकचेन के अनसुलझे मुद्दों की सूची के शीर्ष पर बनी हुई थी। पुराने ज़माने में लेन-देन संबंधी खर्च या वांछित क्रिप्टो एसेट्स को अलग से खरीदे बिना अपने पोर्टफ़ोलियो में विविधता लाना मुश्किल हुआ करता था। रैपिंग विधि के तहत उपयोगकर्ता बिना किसी परेशानी या भारी लागत के अपने पैसे को एक नेटवर्क से दूसरे नेटवर्क में ले जा सकते हैं।
उपयोगकर्ताओं को अब अलग-अलग टोकनों के दरमियाँ फ़ैसला नहीं करना पड़ता, क्योंकि वे बस किसी विशिष्ट कॉइन को खरीदकर विभिन्न नेटवर्कों पर उसके इस्तेमाल के लिए उसे रैप कर सकते हैं। यह रणनीति सबसे ज़्यादा BTC के साथ कारगर साबित होती है, क्योंकि उसे तब्दील कर अलग-अलग ERC प्रोटोकॉलों पर उसका इस्तेमाल किया जा सकता है। वैसे भी, क्रिप्टो कॉइन्स को रैप करने की कार्य-क्षमता की बदौलत यह सुनिश्चित किया जाता है कि उपयोगकर्ता क्रिप्टो बाज़ार के समय-संवेदनशील अवसरों को फ़ौरन लाभ उठा सकें।
अंत में, इंटरऑपरेबिलिटी की बदौलत लोग रैप्ड कॉइन्स को अलग-अलग नेटवर्कों पर कोलैटरल के तौर पर दाँव पर लगा सकते हैं, फिर भले ही यह लोन प्राप्त करने के लिए हो, दाँव लगाने की प्रक्रिया में शामिल होने के लिए, या फिर विभिन्न DAO समुदायों में भाग लेने के लिए।
बाज़ार-व्यापी लिक्विडिटी में वृद्धि
क्रिप्टो उपयोगकर्ताओं के व्यक्तिगत लाभों के अलावा, रैपिंग प्रक्रिया से ब्लॉकचेन की वैश्विक लिक्विडिटी में भी बढ़ोतरी आ जाती है। जब ट्रेडर और व्यवसाय एक चेन से दूसरी चेन में स्वतंत्र रूप से जाने लगते हैं, तो बाज़ार में औसतन ज़्यादा खरीदार और विक्रेता आ जाते हैं, जिससे सभी मोर्चों पर लिक्विडिटी स्तरों में इज़ाफा आ जाता है।
नतीजतन न्यूनतम देरी और ज़्यादा टाइट स्प्रेड मार्जिन के साथ क्रिप्टो टोकनों को खरीद-बेच पाना ज़्यादा आसान हो जाता है क्योंकि तकनीकी सीमाएँ नाम की कोई चीज़ ही नहीं होती।
क्रिप्टो रैपिंग की सीमाएँ
क्रिप्टो रैपिंग की सबसे बड़ी कमियों में नियामक तर्क-वितर्क, वैश्विक मानकों की कमी और सुरक्षा संबंधी चिंताएँ शामिल हैं। रैपिंग प्रक्रिया अभी भी अपने शैशवकाल में है, और अभी तक इस टेक्नोलॉजी को प्रभावित करने वाले कोई नियम-कायदे हमें देखने को नहीं मिले हैं। यह कहना नामुमकिन है कि आगे जाकर दुनियाभर की नियामक संस्थाओं की ओर से क्रिप्टो रैप्स पर कोई पाबंदियाँ लगाई जाएँगी या नहीं।
इसके अलावा, रैपिंग प्रक्रिया को विभिन्न प्लेटफ़ॉर्मों पर अभी मानकीकृत होने में काफ़ी वक्त लगेगा। फलस्वरूप कॉइन्स को अलग-अलग प्लेटफ़ॉर्मों के दरमियाँ रैप करना कोई छोटी-मोटी प्रक्रिया नहीं है, और इस वजह से इसके कई फ़ायदों का कोई मतलब नहीं रह जाता। कई नेटवर्कों ने इस पद्धति को अपनाया नहीं है, जिससे जाने-माने टोकन के रैप्ड वर्शन काफ़ी सीमित मात्रा में उपलब्ध हैं।
यह कहना अभी मुश्किल है कि रैपिंग पद्धति बाज़ार में अपना दबदबा कायम कर पाएगी या नहीं, जिससे जाने-माने नेटवर्क इस टेक्नोलॉजी को अपनाने के लिए मजबूर हो जाएँगे। तब तक, इस बात की भविष्यवाणी कर पाना नामुमकिन-सा है कि रैपिंग सॉल्यूशन क्या कभी अलग-अलग नेटवर्कों को एक-साथ इस्तेमाल करने का उपयुक्त विकल्प बन सकेंगे या नहीं।
अंत में, ब्लॉकचेन के विकेंद्रीकरण के संदर्भ में बात करें तो रैप्ड टोकन की कार्य-पद्धति में अभी काफ़ी खामियाँ हैं। रैप्ड टोकन प्राप्त करने के लिए क्रिप्टो कस्टोडियनों से जुड़ना अनिवार्य होता है। इस प्रक्रिया का स्वाभाविक परिणाम केंद्रीकरण होता है, क्योंकि उपयोगकर्ता के पैसे को एक केंद्रीय तीसरी पार्टी के माध्यम से गुज़रना पड़ता है। रैप्ड टोकन डेवलपमेंट समाधान अभी तक इस अहम समस्या को हल नहीं कर पाएँ हैं और अलग-अलग कंपनियाँ क्रिप्टो रैपिंग के विकेंद्रीकृत वेरिएशनों पर काम कर रही हैं।
क्या रैप्ड टोकनों में निवेश करना एक अच्छा विचार है?
उपर्युक्त फ़ायदों और नुकसानों के चलते यह स्पष्ट नहीं है कि रैपिंग प्रक्रिया कामयाब रहेगी या फिर ब्लॉकचेन इतिहास का एक छोटा-सा अध्याय बनाकर रह जाएगी। इसलिए यह कहना मुश्किल है कि ट्रेडरों के लिए रैप्ड कॉइन विश्वसनीय लॉन्ग-टर्म निवेश हैं या नहीं। फ़िलहाल WBTC और WBNB कॉइन्स में लगातार विकास आ रहा है और महीने दर महीने उनकी लोकप्रियता में बढ़ोतरी भी देखने को मिल रही है।
लेकिन रैपिंग विधि के बाज़ार-व्यापी हालात ऊपर-नीचे होते रहे हैं, और कई नेटवर्क इस टेक्नोलॉजी से बचते रहे हैं। बुनियादी तकनीकी जटिलताओं का समाधान करने के लिए रैप्ड कॉइन्स में पर्याप्त गति होनी चाहिए। नतीजतन, विकेंद्रीकृत विकल्पों पर काम कर विकेंद्रीकरण से जुड़े मुद्दों का समाधान खोज निकालने के लिए बाज़ार के भागीदार अधिक प्रेरित दिखाई देंगे।
रैप्ड कॉइन्स का कानूनी पहलू ज़्यादा अप्रत्याशित है, लेकिन इसकी प्रमुख टेक्नोलॉजी अत्यधिक अनुपालन सुनिश्चित करने का भरोसा दिलाती है क्योंकि ऑटोमेटेड प्रोटोकॉल कई सुरक्षा संबंधी चिंताओं का निवारण कर देते हैं। शॉर्ट टर्म में रैप्ड कॉइन्स के इस्तेमाल की व्यावहारिकता काफ़ी सीमित है क्योंकि इस टेक्नोलॉजी को गिने-चुने नेटवर्क ही सपोर्ट करते हैं।
अपने सीमित दायरे के बावजूद, रैप्ड कॉइन्स के उपलब्ध विकल्प विभिन्न ब्लॉकचेन नेटवर्कों के स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट या अन्य बेशकीमती फ़ीचर्स का इस्तेमाल करने की इच्छा रखने वाले BTC उपयोगकर्ताओं के लिए कमाल के साबित होते हैं।
अंतिम विचार
कॉइन रैपिंग दुनियाभर में धूम मचा देने वाली एक हैरतंगेज़ नई टेक्नोलॉजी है। क्रिप्टो के चाहने वाले हमेशा बेहतर फ़ंक्शनैलिटी, चयन की स्वतंत्रता, और नेटवर्क कार्य-क्षमता के लिए तैयार रहते हैं। इन तीनों ही सुधारों को मुहैया कराकर रैपिंग विधि समूचे अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में बेहतर लिक्विडिटी का लाभ भी प्रदान करती है।
लेकिन रैपिंग टेक्नोलॉजी की सुरक्षा, नियम-कायदों, अपनाए जाने की सरलता, और पेगिंग विश्वसनीयता को लेकर अभी भी काफ़ी सवाल खड़े हैं। इनमें से अधिकतर समस्याओं का समाधान मूल रैपिंग प्रक्रिया में निखार ला सुधार पेश कर किया जा सकता है। लेकिन मौजूदा हालात में यह साफ़ नहीं कि ऐसे सुधार लाने के लिए रैपिंग विधि में बाज़ार की पर्याप्त दिलचस्पी है भी या नहीं।
यह देखना दिलचस्प होगा कि रैपिंग टेक्नोलॉजी कुछ गति पकड़कर क्रिप्टो बाज़ार पर कब्ज़ा जमाती है या नहीं या फिर अपनी अधिकतम क्षमता हासिल करने में विफल रहने वाला एक अंडररेटेड विकल्प मात्र बनकर रह जाती है।
आम सवाल-जवाब
रैप्ड कॉइन्स क्या होते हैं?
रैप्ड कॉइन्स ERC-20 और TRC-20 प्रोटोकॉलों पर चलने वाले नेटवर्कों के दरमियाँ इस्तेमाल किए जा सकने वाले जाने-माने ब्लॉकचेन टोकनों के वैकल्पिक वर्शन होते हैं।
रैप्ड कॉइन्स के फ़ायदे-नुकसान क्या होते हैं?
रैप्ड कॉइन्स को अलग-अलग नेटवर्कों पर इस्तेमाल किया जा सकता है, जिससे उपयोगकर्ताओं के लिए चयन की स्वतंत्रता में सुधार आ जाता है और बाज़ार-व्यापी लिक्विडिटी बेहतर हो जाती है। लेकिन अभी भी तीसरी पार्टियों पर निर्भर करने वाली इस टेक्नोलॉजी को कई मौजूदा नेटवर्कों द्वारा सपोर्ट नहीं किया जाता है।
रैप्ड BTC बनाम BTC के कौन-कौनसे फ़ायदे होते हैं?
रैप्ड BTC का Ethereum प्लेटफ़ॉर्म पर इस्तेमाल किया जाता है, जिसे पहले BTC उपयोगकर्ताओं के लिए बंद कर दिया गया था। नतीजतन ETH मुद्रा को खरीदे बगैर ही लोग Ethereum की स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट क्षमताओं समेत अन्य फ़ायदों को एक्सेस कर सकते हैं।